भगवान बार-बार आता है-क्यों ?
एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा - "तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है | हमारा खुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है जबकि तुम्हारा भगवान बार-बार आता है |यह क्या बात है ?"
बीरबल- "जहाँपनाह ! इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दूँगा | आप जरा थोड़े दिनों की मोहलत दीजिए |"
चार-पाँच दिन बीत गये | बीरबल ने एक आयोजन किया | अकबर को यमुना जी में नौका विहार कराने ले गये | कुछ नावों की व्यवस्था पहले से ही करवा दी थी | उस समय यमुना जी छिछली न थीं | उनमेंअथाह जल था | बीरबल ने एक युक्ति की कि जिस नाव में अकबर बैठा था, उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया | सचमुच में वह नवजात शिशु नहीं था | मोम का बालक पुतला बनाकर उसे राजसी वस्त्र पहनाये गये थे ताकि वह अकबर का बेटा लगे | दासी को सब कुछ सिखा दिया गया था |
नाव जब बीच मझधार में पहुँची और हिलने लगी तब 'अरे. .रे. .रे. .ओ. .ओ. . .' कहकर दासी ने स्त्री चरित्रकर के बच्चे को पानी में गिरा दिया और रोने बिलखने लगी | अपने बालक को बचाने-खोजने के लिए अकबर धड़ाम से यमुना में कूद पड़ा | खूब इधर-उधर गोते मारकर, बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला | वह बच्चा तो क्या था मोम का पुतला था |
अकबर कहने लगा- "बीरबल ! यह सारी शरारत तुम्हारी है | तुमने मेरी बेइज्जती करवाने के लिए ही ऐसा किया |"
बीरबल - "जहाँपनाह ! आपकी बेइज्जती के लिए नहीं, बल्कि आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए ऐसा ही किया गया था | आप इसे अपना शिशु समझकर नदी में कूद पड़े | उस समय आपको पता तो था ही इन सब नावों में कई तैराक बैठे थे, नाविक भी बैठे थे और हम भी तो थे ! आपने हमको आदेश क्यों नहीं दिया ? हम कूद कर आपके बेटे की रक्षा करते |"
अकबर- "बीरबल ! यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों को या तैराकों को कहने की फुरसत कहाँ रहती है ? खुद ही कूदा जाता है |"
बीरबल- "जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े, ऐसे ही हमारे भगवान जब अपने बालकों को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे पैगम्बर-वैगम्बर को नहीं भेजते, वरन् खुद ही प्रगट होते हैं | वे अपने बेटों की रक्षा के लिए आप ही अवतार ग्रहण करते है और संसार को आनंद तथा प्रेम के प्रसाद से धन्य करते हैं | आपके उस दिन के प्रश्न का यही उत्तर है |"
एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा - "तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है | हमारा खुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है जबकि तुम्हारा भगवान बार-बार आता है |यह क्या बात है ?"
बीरबल- "जहाँपनाह ! इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दूँगा | आप जरा थोड़े दिनों की मोहलत दीजिए |"
चार-पाँच दिन बीत गये | बीरबल ने एक आयोजन किया | अकबर को यमुना जी में नौका विहार कराने ले गये | कुछ नावों की व्यवस्था पहले से ही करवा दी थी | उस समय यमुना जी छिछली न थीं | उनमेंअथाह जल था | बीरबल ने एक युक्ति की कि जिस नाव में अकबर बैठा था, उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया | सचमुच में वह नवजात शिशु नहीं था | मोम का बालक पुतला बनाकर उसे राजसी वस्त्र पहनाये गये थे ताकि वह अकबर का बेटा लगे | दासी को सब कुछ सिखा दिया गया था |
नाव जब बीच मझधार में पहुँची और हिलने लगी तब 'अरे. .रे. .रे. .ओ. .ओ. . .' कहकर दासी ने स्त्री चरित्रकर के बच्चे को पानी में गिरा दिया और रोने बिलखने लगी | अपने बालक को बचाने-खोजने के लिए अकबर धड़ाम से यमुना में कूद पड़ा | खूब इधर-उधर गोते मारकर, बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला | वह बच्चा तो क्या था मोम का पुतला था |
अकबर कहने लगा- "बीरबल ! यह सारी शरारत तुम्हारी है | तुमने मेरी बेइज्जती करवाने के लिए ही ऐसा किया |"
बीरबल - "जहाँपनाह ! आपकी बेइज्जती के लिए नहीं, बल्कि आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए ऐसा ही किया गया था | आप इसे अपना शिशु समझकर नदी में कूद पड़े | उस समय आपको पता तो था ही इन सब नावों में कई तैराक बैठे थे, नाविक भी बैठे थे और हम भी तो थे ! आपने हमको आदेश क्यों नहीं दिया ? हम कूद कर आपके बेटे की रक्षा करते |"
अकबर- "बीरबल ! यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों को या तैराकों को कहने की फुरसत कहाँ रहती है ? खुद ही कूदा जाता है |"
बीरबल- "जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े, ऐसे ही हमारे भगवान जब अपने बालकों को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे पैगम्बर-वैगम्बर को नहीं भेजते, वरन् खुद ही प्रगट होते हैं | वे अपने बेटों की रक्षा के लिए आप ही अवतार ग्रहण करते है और संसार को आनंद तथा प्रेम के प्रसाद से धन्य करते हैं | आपके उस दिन के प्रश्न का यही उत्तर है |"
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